Saturday, September 6, 2008

क्यूं


वो कहती हैं आवाज़ देते हो मुझको,
तो यूँ चिल्लाते क्यूँ हो,
मिल नहीं सकती मैं तुमसे दिन के उजालो में,
शब् में सबको जागते क्यूँ हो,
दिल पे हाथ नहीं रखते इस तरह,
ज़ख्म अभी ताजा है,
तेरा दर्द तो महसूस मुझे भी होता है,
इसे रो के जताते क्यूँ हो

कहेना उससे


अब न होगा राबता कहना उससे
जिसपे हम चलते रहे हैं साथ साथ
खो गया वोः रास्ता कहना उससे
तेरी यादें दिल से रुखसत हो गयीं
हो चुका यह सानिहा कहना उससे
अब न देखेंगे तुम्हारा रास्ता
दिल को हम समझा चुके कहना उससे
चैन से सोने न देगा गम तुझे
रात भर अब जागना कहना उससे
आशना बनकर न मिलना राह में
दोस्ती एक ख्वाब था कहना उससे
मुड़कर पीछे देखते हम भी नहीं
सोच कर मुँह फिराना कहना उससे

मुझे मालूम है


मुझे दर्द-ऐ-इश्क का मज़ा मालूम है,
दर्द-ऐ-दिल की इन्तहा मालूम है,
जिंदगी में कभी मुस्कुराने की दुआ न देना,
मुझे पल भर मुस्कुराने की सज़ा मालूम है